Waqf Bill: राज्यसभा की जॉइंट पार्लियामेंटरी कमेटी (JPC) की बैठक में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर एक बार फिर से हंगामा मच गया। इस बैठक में विपक्षी दलों के कई नेताओं ने हिस्सा लिया, लेकिन बैठक में कम बातें हुईं और नेताओं के बीच में अधिक विवाद की खबरें आईं। आज एक बार फिर वक्फ संशोधन विधेयक पर चर्चा के लिए JPC की बैठक बुलाई गई थी, लेकिन यह बैठक भी विपक्षी नेताओं के विरोध और हंगामे से भरी रही।
बैठक का माहौल
JPC की इस बैठक में कई विपक्षी नेताओं ने बीच में ही बैठक से बाहर जाने का निर्णय लिया। यह कदम तब उठाया गया जब विपक्षी सदस्यों ने दिल्ली वक्फ बोर्ड के CEO की रिपोर्ट पर आपत्ति जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के प्रशासक ने दिल्ली सरकार की जानकारी के बिना अपनी प्रस्तुति में बदलाव किए हैं।
इस बैठक से बाहर जाने वाले नेताओं में आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद संजय सिंह, DMK के मोहम्मद अब्दुल्ला, कांग्रेस के नसीर हुसैन और मोहम्मद जावेद शामिल थे।
क्या थी समस्याएं?
बैठक से बाहर जाने वाले नेताओं का कहना था कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के प्रशासक अश्विनी कुमार ने वक्फ बोर्ड की प्रारंभिक रिपोर्ट में बदलाव किया था, जबकि मुख्यमंत्री अतिशी की स्वीकृति नहीं ली गई थी। JPC की इस बैठक की अध्यक्षता भाजपा के सांसद जगदम्बिका पाल कर रहे थे।
बैठक के दौरान दिल्ली वक्फ बोर्ड, हरियाणा वक्फ बोर्ड, पंजाब वक्फ बोर्ड और उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया था, ताकि वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर मौखिक साक्ष्य दर्ज किया जा सके।
पिछले बैठक का हंगामा
इसके अलावा, पिछले बैठक में भी हंगामा देखने को मिला था। 22 अक्टूबर को हुई पिछली बैठक में भाजपा के सांसद अभिजीत गांगुली और TMC के सांसद कल्याण बनर्जी के बीच गरमागरम बहस हुई थी। इस बहस के दौरान कल्याण बनर्जी ने गुस्से में एक कांच की बोतल फेंक दी थी, जिससे उनके हाथ में चोट लग गई थी। बताया जा रहा है कि उन्हें अपने हाथ में चार टांके लगे थे। इसके बाद कल्याण बनर्जी को बैठक से एक दिन के लिए बाहर कर दिया गया था।
राजनीति का असली चेहरा
वक्फ संशोधन विधेयक की चर्चा के दौरान होने वाले इस प्रकार के हंगामे से यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक दलों के बीच में तनाव और विवाद बढ़ते जा रहे हैं। इस प्रकार की घटनाएं न केवल संसद की गरिमा को कम करती हैं, बल्कि जनता के बीच में भी गलत संदेश भेजती हैं।
विपक्षी दलों का यह आरोप है कि सरकार द्वारा पारित किए जाने वाले कई विधेयक बिना किसी गंभीर चर्चा के ही आगे बढ़ाए जा रहे हैं। इस प्रकार की कार्रवाई से यह भी प्रतीत होता है कि सरकार किसी भी प्रकार की आलोचना को सहन नहीं कर रही है, और इसी कारण विपक्षी दलों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
जनता की नजर में घटनाएं
आम जनता की नजर में ये घटनाएं कई प्रश्न उठाती हैं। क्या यह राजनीति का सही तरीका है? क्या जनता की समस्याओं को सही तरीके से उठाया जा रहा है? क्या हमारे नेताओं को इस प्रकार की अनावश्यक बहसों और हंगामों से बाहर निकलकर जनहित में काम करने की आवश्यकता नहीं है?
इस हंगामे के पीछे का असली कारण क्या है? क्या यह केवल राजनीतिक स्वार्थ है या वास्तव में जनता के हित में कुछ सार्थक किया जा रहा है?
वक्फ संशोधन विधेयक पर JPC की बैठक में हंगामा एक संकेत है कि हमारी राजनीतिक प्रणाली में क्या चल रहा है। नेताओं के बीच में होने वाली इस प्रकार की घटनाएं न केवल उनके व्यवहार को दर्शाती हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट करती हैं कि हमारे देश में राजनीतिक संवाद कितना बिगड़ चुका है।
हमें यह समझना होगा कि राजनीति केवल सत्ता की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह जनता की सेवा का एक माध्यम है। हमें अपने नेताओं से उम्मीद करनी चाहिए कि वे इस प्रकार की विवादित घटनाओं से बाहर निकलकर जनहित में काम करें और हमारी समस्याओं का समाधान करें।
अब यह देखना होगा कि वक्फ संशोधन विधेयक पर आगे क्या कार्रवाई होती है और क्या सरकार विपक्षी दलों की चिंताओं को गंभीरता से लेगी। क्या हमें एक सकारात्मक राजनीतिक संवाद की उम्मीद करनी चाहिए? या हमें इसी प्रकार के हंगामों और विवादों को देखने के लिए तैयार रहना होगा?