Uttar Pradesh Encounter: उत्तर प्रदेश में राजनीतिक गलियारों में एनकाउंटर को लेकर चर्चा हमेशा गरम रहती है। हाल ही में, बहाराइच में राम गोपाल मिश्रा की हत्या के आरोपियों सरफराज और तमिल के एनकाउंटर ने इस मुद्दे को फिर से ताजा कर दिया है। इस एनकाउंटर में दोनों आरोपियों को गंभीर चोटें आईं और पुलिस के साथ मुठभेड़ में उनकी मौत हो गई। समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए एनकाउंटर का सहारा ले रही है।
एनकाउंटर का यह मुद्दा कोई नया नहीं है। उत्तर प्रदेश में कई मौकों पर एनकाउंटरों का राजनीतिक लाभ उठाया गया है। इस विशेष लेख में, हम उन प्रमुख एनकाउंटरों की चर्चा करेंगे, जिन्होंने सत्ता को सीधे तौर पर फायदा पहुँचाया।
शुक्ला का एनकाउंटर: मुख्यमंत्री को मिली राहत
उत्तर प्रदेश में पहला बड़ा एनकाउंटर श्रिप्रकाश शुक्ला का था। शुक्ला, जो उस समय के सबसे बड़े अपराधियों में से एक माने जाते थे, ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या का ठेका लिया था। जब खुफिया सूचना मिली, तो कल्याण सिंह ने तुरंत एसटीएफ का गठन किया, जिसके नेतृत्व में आईपीएस अधिकारी अजय राज शर्मा थे।
28 सितंबर 1998 को शुक्ला का एनकाउंटर हुआ, जिसके बाद कल्याण सिंह ने राहत की सांस ली। इस एनकाउंटर ने न केवल अपराध पर काबू पाने में मदद की, बल्कि कल्याण सिंह की छवि को भी मजबूत किया।
मायावती का दबदबा: ददुआ-ठोकिया का एनकाउंटर
2007 में मायावती ने उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई। सत्ता में आते ही, उन्होंने ददुआ-ठोकिया जैसे डाकुओं को अपने निशाने पर लिया। यह ददुआ-ठोकिया मुलायम सिंह की पार्टी के लिए काम कर रहे थे, जिससे मायावती को राजनीतिक लाभ उठाने का अवसर मिला।
बाद में, एसटीएफ ने ददुआ-ठोकिया के खिलाफ कार्रवाई की और दोनों को एनकाउंटर में मार गिराया। इस एनकाउंटर ने मायावती को न केवल यूपी में बल्कि मध्य प्रदेश के चुनावों में भी बड़ा राजनीतिक लाभ दिलाया, जहां उनकी पार्टी ने 2008 के विधानसभा चुनावों में 7 सीटें जीतीं।
विकास दुबे का एनकाउंटर: बीजेपी को मिला लाभ
विकास दुबे का एनकाउंटर जुलाई 2020 में हुआ, जब उसने यूपी पुलिस के जवानों पर हमला किया था। विकास दुबे की राजनीतिक सक्रियता ने उसकी हत्या को और भी महत्वपूर्ण बना दिया।
इस एनकाउंटर के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचल बढ़ गई। विधानसभा चुनाव 2022 में, बीजेपी ने कानपुर क्षेत्र में 27 में से 22 सीटें जीत लीं, जबकि 2017 में केवल 20 सीटें जीती थीं। इस तरह विकास दुबे का एनकाउंटर बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुआ।
अतीक अहमद के बेटे आसद का एनकाउंटर
फरवरी 2023 में बीजेपी नेता उमेश पाल की हत्या में अतीक अहमद और उसके बेटे आसद का नाम सामने आया। इसके बाद आसद फरार हो गया। पुलिस ने उसकी तलाश शुरू की और अप्रैल 2023 में उसकी लोकेशन का पता लगाया।
जब पुलिस आसद को गिरफ्तार करने गई, तो एनकाउंटर हुआ और आसद की मौत हो गई। कुछ दिनों बाद अतीक और उसके भाई की भी हत्या कर दी गई। अतीक ने फूलपुर में राजनीतिक दबदबा कायम किया था और वह वहाँ के सांसद रह चुके थे।
राजनीतिक लाभ और एनकाउंटर
एनकाउंटर ने हमेशा से सत्ता में बैठे दलों को राजनीतिक लाभ पहुँचाया है। यह एक ऐसा हथियार बन गया है जिसका उपयोग सरकारें अपनी छवि को सुधारने और विपक्षी दलों को कमजोर करने के लिए करती हैं। एनकाउंटर से न केवल अपराधियों पर नियंत्रण पाया जाता है, बल्कि यह सरकार की कानून व्यवस्था पर नियंत्रण की छवि भी प्रस्तुत करता है।
हालांकि, एनकाउंटर की इस राजनीति पर सवाल उठना लाजिमी है। क्या यह कानून का शासन है या फिर सत्ता का दुरुपयोग? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हर नागरिक को सोचना चाहिए।