Prayagraj News: भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने रविवार को यहां आयोजित महापंचायत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किसानों को एक वर्ष के लिए मुफ्त बिजली देने के वादे पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब किसानों के खेतों पर मीटर लगाए जा रहे हैं, तो मुफ्त बिजली कैसे मिल सकती है? यह सवाल किसानों के बीच की चिंता को और बढ़ाता है, जो अपने अधिकारों और सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मुफ्त बिजली का वादा
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुंदेलखंड के किसानों को 1300 यूनिट और अन्य जिलों के किसानों को 1045 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा की थी। यह कदम किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उठाया गया था, ताकि वे अपनी फसलों को अच्छी तरह से उगा सकें और खेती में और अधिक निवेश कर सकें। लेकिन राकेश टिकैत ने इस वादे की सत्यता पर सवाल उठाया है।
मीटर का मुद्दा
राकेश टिकैत ने महापंचायत में कहा कि अगर खेतों पर मीटर लगाए जा रहे हैं, तो यह किसानों के लिए मुफ्त बिजली प्राप्त करने के वादे का उल्लंघन है। उनका तर्क है कि यदि किसानों के खेतों पर मीटर लग जाएंगे, तो न केवल उन्हें बिजली का बिल चुकाना होगा, बल्कि यह भी संभव है कि मुफ्त बिजली का लाभ मिलने में बाधा उत्पन्न हो। यह स्थिति किसानों के लिए और अधिक कठिनाइयों का कारण बनेगी, जो पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं।
चुनावी वादे और किसानों की आवाज
टिकैत ने आगे कहा कि यदि मीटर लगाने का यह मुद्दा गंभीर है, तो इसे 2027 के विधानसभा चुनावों के पूर्व चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करना होगा। ऐसा करने से ही किसानों की चिंताओं को संबोधित किया जा सकेगा और उन्हें आश्वासन मिलेगा कि उनकी समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
धान और मक्का की कीमतें
राकेश टिकैत ने धान की कीमतों पर भी चिंता जताई। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्वांचल के जनपदों जैसे जौनपुर, मिर्जापुर और बलिया में किसानों से धान 1200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से लिया जा रहा है, जो उनकी मेहनत का सही मुआवजा नहीं है। इसी तरह मक्का की भी स्थिति है, जिससे स्पष्ट होता है कि किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल रहा है।
बिहार में किसानों की स्थिति
टिकैत ने यह भी बताया कि बिहार में किसानों को फसलों के निम्न मूल्यों के कारण 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यह केवल बिहार की स्थिति नहीं है, बल्कि पूरे देश के किसानों की हालत चिंताजनक है। खेती पर निर्भर रहने वाले किसानों की मेहनत को उचित मूल्य नहीं मिलने से उनका जीवन स्तर गिर रहा है और वे कर्ज में डूबते जा रहे हैं।
बंधुआ मजदूरी का खतरा
राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि सरकार चाहती है कि लोग बंधुआ मजदूरों की तरह जीने पर मजबूर हों। यह एक बड़ी साजिश है, जिससे देश को एक मजदूरों का देश बनाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि उद्योगों में काम करने वालों की भारी कमी है, और सरकार इस कमी को पूरा करने के लिए किसानों को बंधुआ मजदूरों की तरह बनाना चाहती है।
सलमान खान का मामला
महापंचायत में राकेश टिकैत ने सलमान खान के मामले पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यदि किसी विवाद को Bishnoi समुदाय से माफी मांगकर सुलझाया जा सकता है, तो इसमें क्या गलत है? अगर किसी ने जानबूझकर या अनजाने में कोई गलती की है, तो माफी मांगने में सलमान खान को क्या नुकसान होगा? यह प्रश्न सामाजिक और राजनीतिक संवेदनशीलता को उजागर करता है, जहां एक व्यक्ति की पहचान और उसके कार्यों की सामाजिक स्वीकार्यता पर विचार किया जाता है।
किसान आंदोलन की यह नई लहर हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने किसानों की समस्याओं को गंभीरता से ले रहे हैं। मुफ्त बिजली का वादा और मीटर लगाने का मुद्दा, दोनों ही किसानों के लिए महत्वपूर्ण हैं। राकेश टिकैत के बयान और उनकी चिंताएं यह दिखाती हैं कि जब तक किसानों की आवाज को सुना नहीं जाता, तब तक उनकी समस्याएं समाधान से कोसों दूर रहेंगी।
किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके लिए केवल वादे करने से काम नहीं चलेगा, बल्कि उन्हें वास्तविकता में बदलने की आवश्यकता है। यदि सरकार वास्तव में किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है, तो उन्हें चाहिए कि वे अपनी नीतियों को स्पष्ट करें और किसानों के अधिकारों का सम्मान करें। किसान हमारे देश की रीढ़ की हड्डी हैं, और उनकी आवाज को अनसुना करना किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए उचित नहीं है।