Gorakhpur शहर के बशारतपुर इलाके में स्थित मोती पोखरे, जिसे कुछ समय पहले तक काई की मोटी परत ने ढक रखा था, आज पूरी तरह से बदल चुकी है। जिन लोगों ने एक महीने पहले इस पोखरे को देखा था, वे शायद इस बात पर यकीन नहीं करेंगे कि यह वही जगह है। 17 दिनों के अंदर इस पोखरे का रूप इतना बदल गया है कि अब यहां सालों पहले डूबी हुई नाव भी साफ-साफ दिखाई देने लगी है।
गुजरात की कंपनी कर रही है सफाई
इस बदलाव का श्रेय गोरखपुर नगर निगम द्वारा किए गए एक विशेष प्रयास को जाता है। नगर निगम ने इस तालाब की सफाई का जिम्मा गुजरात की वेलिएंट इंटैक प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को दिया, जो दक्षिण अफ्रीका में भी तालाबों और जलाशयों की सफाई का काम कर रही है। इस कंपनी ने 24 सितंबर से इस पोखरे की सफाई का काम शुरू किया था। सफाई का काम कंपनी के ‘REGAL’ (Radical Enhancement Using Gas Assisted Liquid Dispersion) नामक पेटेंटेड तकनीक से किया जा रहा है। यह तकनीक तालाब के पानी को शुद्ध और साफ करने के लिए अत्याधुनिक उपकरणों का उपयोग करती है।
90 दिन तक चलेगी सफाई
हालांकि, सफाई प्रक्रिया 90 दिनों तक चलेगी, लेकिन केवल 17 दिनों के भीतर इस तालाब की सूरत बदल गई है। कंपनी ने इस प्रोजेक्ट को एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में अपने खर्च पर शुरू किया था। अगर यह सफाई सफल होती है, तो गोरखपुर के अन्य तालाबों की सफाई भी इसी तकनीक से की जाएगी।
बीओडी और सीओडी स्तर में बड़ी गिरावट
प्रोजेक्ट का मॉनिटरिंग कर रहे परम देसाई के अनुसार, सफाई प्रक्रिया के बाद पोखरे के पानी की गुणवत्ता में बहुत बड़ा सुधार हुआ है। जांच में पाया गया है कि बीओडी (Biochemical Oxygen Demand) 65 पीपीएम से घटकर 9 पीपीएम हो गई है और सीओडी (Chemical Oxygen Demand) 170 पीपीएम से घटकर 10.1 पीपीएम तक आ गई है। इसके साथ ही अमोनिया का स्तर भी 1.8 पीपीएम के खतरनाक स्तर से घटकर 0.01 पीपीएम तक आ गया है।
नैनो बबल्स और अल्ट्रासाउंड की तकनीक का उपयोग
दशकों पुरानी इस पोखरे की सफाई के लिए नैनो बबल्स, अल्ट्रासाउंड और फ्री रेडिकल्स जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है। अल्ट्रासाउंड मशीन से पानी में 20,000 से 30,000 मेगाहर्ट्ज़ की ध्वनि उत्पन्न की जा रही है, जिससे E-coli बैक्टीरिया के सेल्स को नुकसान पहुँचता है और वे नष्ट हो जाते हैं। इस प्रक्रिया को लगातार दोहराने से तालाब का पानी साफ हो रहा है।
इसके साथ ही ‘एरेटर’ नामक मशीन की मदद से नैनो बबल्स का भी उपयोग किया जा रहा है, जो ऑक्सीजन को पानी के तल तक पहुँचाती है। यह बबल्स कोरोना वायरस से भी छोटे होते हैं, जिससे पानी के अंदर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। ऑक्सीजन की बढ़ी हुई मात्रा से फायदेमंद बैक्टीरिया को बढ़ने और फैलने का अवसर मिलता है। ये बैक्टीरिया तालाब के तल में जमे गंदगी (COD और BOD) को भोजन के रूप में उपयोग करते हैं, जिससे तालाब का पानी स्वच्छ और घना होता जाता है।
पोखरे की सफाई के बाद होगा सौंदर्यीकरण
सफाई के बाद नगर निगम प्रशासन इस पोखरे का सौंदर्यीकरण करेगा। नगर निगम के मुख्य अभियंता संजय चौहान ने जानकारी दी कि पोखरे के किनारे पर पाथवे (मार्ग) बनाए जाएंगे और बैठने के लिए बेंच भी लगाई जाएंगी। इसके अलावा, तालाब के चारों ओर आकर्षक लाइटें लगाई जाएंगी, जिससे इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सके। साथ ही, पोखरे में गिरने वाले नालों के पानी को रोकने के लिए भी उपाय किए जाएंगे, ताकि तालाब फिर से गंदा न हो।
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया
पोखरे की सफाई को लेकर स्थानीय लोगों में खुशी की लहर है। बशारतपुर इलाके के निवासी राकेश सिंह का कहना है कि “इस तालाब की स्थिति देखकर हम बहुत चिंतित थे, लेकिन अब यह देखकर बहुत अच्छा लग रहा है कि वर्षों से डूबी हुई नाव भी साफ दिखाई देने लगी है। नगर निगम का यह प्रयास सराहनीय है और इससे गोरखपुर के अन्य तालाबों की सफाई का मार्ग प्रशस्त होगा।”
स्थानीय व्यापारी मोहित वर्मा का कहना है कि “पोखरे के सौंदर्यीकरण के बाद यहां लोगों के लिए एक अच्छा पिकनिक स्थल बन सकता है। इसके अलावा, यह आसपास के इलाके की आर्थिक स्थिति में भी सुधार करेगा।”
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम
मोती पोखरे की सफाई गोरखपुर नगर निगम के लिए एक बड़ा पर्यावरणीय कदम है। इस प्रकार के तालाब और जलाशयों की सफाई न केवल स्थानीय निवासियों के लिए जरूरी है, बल्कि यह पर्यावरण के संरक्षण और जल संसाधनों को बचाने के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस सफाई प्रक्रिया से तालाब के अंदर रहने वाले जीव-जंतुओं को भी फायदा होगा और पानी की गुणवत्ता में सुधार से आसपास के इलाकों में जलस्तर भी सुधरेगा।