Gorakhpur: गोरखपुर के आकाश में अब पक्षियों की चहचहाहट और बढ़ती हुई संख्या के साथ एक नयी सुबह आई है। गोरखनगर क्षेत्र के आकाश में अब प्रवासी पक्षियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर सारसों और एशियाई ओपनबिल की। यह परिवर्तन वन विभाग की विशेष पहल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में हुई योजनाओं का परिणाम है।
सारसों का बढ़ता कुनबा और उनका स्थायित्व
गोरखपुर वन विभाग ने गोरखपुर वन्यजीव क्षेत्र में कुल 92 तालाबों, नदियों और जलाशयों को साफ किया है ताकि प्रवासी पक्षियों को पर्याप्त भोजन मिल सके। इन जलाशयों और नदियों के कारण पक्षियों को शांति और प्राकृतिक आवास मिल रहा है, जिससे उनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। गोरखपुर क्षेत्र में सारसों की संख्या पिछले तीन वर्षों में तीन गुना बढ़ी है। 2021 में, जब पहली बार वन विभाग ने सारसों की गणना की थी, तब केवल 128 सारस पाए गए थे। इसमें 116 वयस्क और 16 बच्चे थे। इसके बाद, मुख्यमंत्री के निर्देशों पर तालाबों और जलाशयों को संरक्षित किया गया और शिकारियों पर कड़ी निगरानी रखी गई।
मुख्यमंत्री की पहल से हुई सारसों की संख्या में वृद्धि
2022 में सारसों की संख्या बढ़कर 187 हो गई, जिनमें 169 वयस्क और 18 बच्चे थे। फिर 2023 में यह संख्या 426 तक पहुँच गई, जिनमें 347 वयस्क और 79 बच्चे थे। 2024 की गर्मी में हुई गणना में 675 सारस पाए गए, जिनमें 576 वयस्क और 99 बच्चे थे। यह वृद्धि वन विभाग की निरंतर देखरेख, शिकारियों पर नियंत्रण और पक्षियों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित करने के परिणामस्वरूप हुई है। सर्दियों में होने वाली सारसों की गणना अभी बाकी है, जो दिसंबर में की जाएगी।
गोरखपुर के विशेष क्षेत्र जहां सारसों का बसेरा
गोरखपुर वन विभाग के अनुसार, जिले में कुल 11 रेंज हैं, जिनमें कुछ विशेष क्षेत्र हैं जो सारसों के लिए उपयुक्त हैं। इन क्षेत्रों में सारसों को जोड़े के रूप में देखा जाता है, जो सुबह और शाम यहां आते हैं। वन विभाग की टीम इन स्थानों पर प्रतिदिन गश्त करती है और सारसों की गणना और निगरानी करती है।
सारसों की सबसे बड़ी संख्या पारतवल रेंज में पाई जाती है। इसके बाद, सबसे अधिक संख्या कैंपियरगंज और साहजानवां क्षेत्र के छोटे तालाबों और जलाशयों के किनारे देखी जाती है। इसके अलावा, चिलुआताल और अन्य स्थानों पर भी सारस और प्रवासी पक्षी सर्दियों के दौरान कैंप करते हैं। यहां शिकारी न होने के कारण पक्षी सुरक्षित महसूस करते हैं और इन्हें कोई डर नहीं होता।
सारसों के प्रतीकात्मक महत्व और उनका जीवन
विभागीय वन अधिकारी (DFO) विकास यादव ने बताया कि सारस पक्षी की विशेष बात यह है कि यह एक ही स्थान पर रहता है। यदि ये पक्षी सुरक्षित महसूस करते हैं तो वही स्थान इन्हें अपना घोंसला बनाने और प्रजनन करने के लिए उपयुक्त लगता है। इसके अलावा, सारस को प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। यदि एक सारस जोड़े में से कोई एक पक्षी मर जाता है, तो दूसरा भी कुछ दिनों में उसकी मृत्यु के साथ उसकी सन्नाटा में साथ छोड़ देता है।
DFO ने बताया कि गोरखपुर वन विभाग के लिए राज्य पक्षी सारस की संख्या में लगातार वृद्धि एक सुखद समाचार है। यहां के जलवायु और वातावरण ने इन पक्षियों को बहुत आकर्षित किया है, जिसके परिणामस्वरूप पिछले तीन से चार वर्षों में इनकी संख्या पांच गुना बढ़ गई है।
एशियाई ओपनबिल की बढ़ती संख्या
गोरखपुर क्षेत्र में सारसों के साथ-साथ एशियाई ओपनबिल की संख्या भी बढ़ रही है। यह प्रवासी पक्षी मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण-पूर्वी एशिया में पाए जाते हैं। उप वन अधिकारी डॉ. हरेंद्र सिंह ने बताया कि एशियाई ओपनबिल भी सारसों की तरह मछलियों को अपना मुख्य आहार मानते हैं और यह पक्षी भी तालाबों, पोखरों और नदियों के पास रहना पसंद करते हैं। उनके चोंच का मध्य भाग गोल और उठे हुए आकार में होता है, जो उन्हें विशिष्ट बनाता है।
वन विभाग की कड़ी निगरानी और सुरक्षा इंतजाम
गोरखपुर वन विभाग ने लगातार बढ़ती संख्या के बीच इन पक्षियों की सुरक्षा के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। विभाग ने इन पक्षियों के लिए सुरक्षित आवास सुनिश्चित किया है, जहां वे बिना किसी खतरे के अपना समय बिता सकते हैं। इसके अलावा, विभाग ने शिकारी गतिविधियों को भी प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया है, जिससे इन पक्षियों को शिकारियों से खतरा नहीं है।
आगे की योजना और प्रगति
वन विभाग का लक्ष्य इन पक्षियों की संख्या को और बढ़ाना और गोरखपुर वन क्षेत्र को एक प्रमुख पक्षी अभयारण्य के रूप में विकसित करना है। इसके लिए विभाग लगातार नए योजनाओं को लागू कर रहा है, जिसमें जलाशयों की सफाई, नए संरक्षण क्षेत्र की पहचान, और पक्षियों की निगरानी के लिए टेक्नोलॉजिकल टूल्स का इस्तेमाल किया जा रहा है।
गोरखपुर में सारसों और अन्य प्रवासी पक्षियों की संख्या में तेजी से वृद्धि, वन विभाग की निरंतर कोशिशों और मुख्यमंत्री की दिशा-निर्देशों का परिणाम है। गोरखपुर का वातावरण और जलवायु अब इन पक्षियों के लिए एक आदर्श स्थल बन चुका है, और आने वाले वर्षों में यहां और भी पक्षियों का आगमन होने की संभावना है।