Gorakhpur News: गोरखपुर में इस बार छठ महापर्व की चार दिवसीय अनुष्ठानिक यात्रा की शुरुआत 5 नवंबर, मंगलवार से नहाय-खाय के साथ होगी। व्रतियों द्वारा 7 नवंबर को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य और 8 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस पवित्र महापर्व में शुद्धता का विशेष महत्व होता है, जहां व्रत करने वाली महिलाएं घर और रसोई की सफाई में जुट जाती हैं, ठीक वैसे ही जैसे दीवाली के समय की जाती है। छठ महापर्व चैत्र और कार्तिक महीने में साल में दो बार मनाया जाता है।
पंडित डॉ. जोखन पांडे के अनुसार, 5 नवंबर को नहाय-खाय के दिन व्रती महिलाएं पास के किसी नदी या तालाब में स्नान करके शुद्धता के साथ घर में कद्दू-भात (कद्दू और चावल) बनाएंगी। यह एक पारंपरिक और पवित्र भोजन है, जो पर्व की शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है।
व्रत का आरंभ और शुद्धता का महत्व
छठ महापर्व के दौरान व्रती महिलाएं चार दिनों तक भूमि पर सोती हैं और केवल शाम को प्रसाद के रूप में कुछ ग्रहण करती हैं। नहाय-खाय के अगले दिन 6 नवंबर को खर्ना का आयोजन होता है। इस दिन उपवास के बाद विशेष प्रसाद चढ़ाया जाता है और महिलाएं इसे ग्रहण करती हैं। 7 नवंबर को निर्जल व्रत का दिन होता है, जिसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
अर्घ्य का महत्व और प्रक्रिया
7 नवंबर की शाम को छठ पूजा में व्रत करने वाली महिलाएं अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगी। इस दिन व्रत का कठिनतम दिन होता है, जिसमें महिलाएं निर्जल रहती हैं और सूर्यास्त के समय यानी 5:29 बजे अर्घ्य अर्पित करेंगी। इसके बाद प्रसाद को घर लाया जाता है और रात में जागरण करते हुए माता षष्ठी की कथा सुनी जाती है।
कोसी भरने की परंपरा
कई घरों में कोसी भरने की परंपरा भी होती है। 8 नवंबर को व्रत का समापन होता है, जिसमें उगते सूर्य को सुबह 6:32 बजे अर्घ्य दिया जाएगा। यह दिन श्रद्धा और आस्था का दिन होता है, जब माताओं और बहनों द्वारा षष्ठी माता की विदाई होती है। इस दिन लोग अपनी मन्नत पूरी होने की खुशी में कृतज्ञता अर्पित करते हैं और पर्व की समाप्ति पर भगवान सूर्य और माता षष्ठी को धन्यवाद देते हैं।
पंडित बृजेश पांडे, जो श्री हनुमान ज्योतिष सेवा संघ के संस्थापक अध्यक्ष हैं, बताते हैं कि इस चार दिवसीय पर्व में गोरखपुर और आसपास के इलाकों में उत्सव का माहौल होता है। हर ओर आस्था का दृश्य देखने को मिलता है, विशेषकर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय नदी और तालाब के किनारे। लोग परिवार के साथ वहां एकत्र होते हैं और भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। कई लोग अपने घरों में छोटे गड्ढे खुदाकर भी पूजा-अर्चना करते हैं।
छठ सामग्री की खरीदारी और भीड़भाड़
छठ महापर्व की शुरुआत होते ही शहर में छठ पूजा के लिए विशेष सामग्री की खरीदारी तेज हो गई है। लोग बांस की टोकरी, नारियल, फल, सूप, दीपक, गन्ना, प्रसाद सामग्री जैसी चीजें खरीद रहे हैं। बाजारों में रौनक है और भीड़भाड़ के कारण ट्रैफिक जाम की स्थिति भी बन रही है। चूंकि छठ पूजा में हर वस्त्र और सामग्री का धार्मिक महत्त्व है, इसलिए लोग इसे खरीदने में खास ध्यान देते हैं।
सामाजिक एकता और सौहार्द का प्रतीक
छठ महापर्व सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सौहार्द का प्रतीक भी है। इस पर्व में जाति-धर्म से ऊपर उठकर लोग एक साथ सूर्य देवता की पूजा में सम्मिलित होते हैं। यह पर्व भारतीय संस्कृति की गहराई को दर्शाता है, जहां एक दूसरे के साथ मिलकर पूजा-अर्चना की जाती है। चारों ओर एक नई ऊर्जा का संचार होता है और लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ इस पर्व का आनंद लेते हैं।
गोरखपुर में इस चार दिवसीय छठ महापर्व का विशेष महत्त्व है। छठ पूजा का यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि समाज में एकता और धार्मिक आस्था को भी सुदृढ़ करता है। इस अवसर पर पूरा शहर एक उत्सव में बदल जाता है, जहां हर कोई एक दूसरे के साथ मिलकर पर्व का आनंद लेता है।
उम्मीद है कि यह महापर्व सभी के जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाए। माता षष्ठी और भगवान सूर्य की कृपा सभी पर बनी रहे और समाज में ऐसे पर्वों के माध्यम से सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का संदेश फैलता रहे।