Gorakhpur News: इस बार दिवाली की रात आतिशबाजी ने न केवल शहर के वायुमंडल की वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में बढ़ोतरी की, बल्कि CO2 (कार्बन डाइऑक्साइड) के स्तर को भी खतरनाक स्तर तक पहुंचा दिया। शाम ढलने के साथ जैसे-जैसे आतिशबाजी का दौर तेज हुआ, वैसे-वैसे CO2 का स्तर भी बढ़ता गया और जैसे ही आतिशबाजी रुकी, CO2 का स्तर फिर से घटने लगा। गोरखपुर विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रामवंत गुप्ता ने अपने उपकरणों के माध्यम से CO2 स्तर की निगरानी कर इस बदलाव को दर्ज किया।
मॉनिटरिंग का समय और डेटा:
डॉ. रामवंत ने दिवाली के दिन शाम 4 बजे से CO2 स्तर की निगरानी शुरू की, जो रात 2 बजे तक जारी रही। उनके द्वारा प्राप्त डेटा के अनुसार, रात 9 बजे CO2 का स्तर 600 ppm (पार्ट्स पर मिलियन) तक पहुँच गया, जो मानक स्तर से करीब ढाई गुना अधिक था। CO2 का औसत मानक स्तर 420 ppm है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं माना जाता। लेकिन आतिशबाजी के कारण CO2 के स्तर में रात में इतनी बढ़ोतरी होना चिंताजनक है, क्योंकि रात में पौधे CO2 को अवशोषित नहीं करते, जिससे यह CO2 सुबह तक वातावरण में बना रहता है।
आतिशबाजी और CO2 का बढ़ता स्तर:
आतिशबाजी से होने वाले इस CO2 वृद्धि का डेटा पहली बार इस प्रकार विस्तृत रूप में सामने आया है। डॉ. रामवंत ने बताया कि इस प्रकार की बढ़ोतरी मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। जैसे ही वातावरण में CO2 की मात्रा मानक स्तर से अधिक हो जाती है, सांस लेने में कठिनाई होने लगती है, चक्कर आने लगते हैं और व्यक्ति बेहोशी की स्थिति में भी जा सकता है। बंद स्थानों में इस स्थिति से दम घुटने का भी खतरा होता है।
CO2 का स्तर (दिवाली शाम से रात तक): नीचे दिए गए समय के अनुसार CO2 स्तर में बढ़ोतरी देखी गई:
- 4 बजे – CO2 स्तर: 435 ppm
- 5 बजे – CO2 स्तर: 455 ppm
- 6 बजे – CO2 स्तर: 475 ppm
- 7 बजे – CO2 स्तर: 494 ppm
- 8 बजे – CO2 स्तर: 517 ppm
- 9 बजे – CO2 स्तर: 596 ppm
- 10 बजे – CO2 स्तर: 546 ppm
- 11 बजे – CO2 स्तर: 531 ppm
- 12 बजे – CO2 स्तर: 530 ppm
- 1 बजे – CO2 स्तर: 501 ppm
- 2 बजे – CO2 स्तर: 440 ppm
रात 9 बजे का स्तर, यानी 600 ppm, स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक खतरनाक माना गया है, जो सांस लेने में कठिनाई और चक्कर आने जैसे लक्षण उत्पन्न कर सकता है।
CO2 का स्वास्थ्य पर प्रभाव:
डॉ. रामवंत ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया कि CO2 के इस स्तर पर पहुँचने से मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से वे लोग, जिन्हें पहले से सांस संबंधी समस्या है, इस प्रकार की स्थिति में अधिक जोखिम में आ जाते हैं। उच्च CO2 स्तर से बंद स्थानों में दम घुटने की स्थिति बन सकती है, जिससे बेहोशी और सांस की गंभीर समस्या हो सकती है।
रिपोर्ट और सुझाव:
डॉ. रामवंत ने अपने अध्ययन से मिले आंकड़ों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार की है। वह इस रिपोर्ट को विश्वविद्यालय प्रशासन के माध्यम से पर्यावरण विभाग को सौंपेंगे, जिससे विभाग इस अध्ययन के परिणामों को जनता के बीच साझा कर सके और लोगों को जागरूक कर सके। उन्होंने सुझाव दिया है कि आतिशबाजी से होने वाली CO2 बढ़ोतरी को कम करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। इसके लिए ग्रीन क्रैकर्स का प्रयोग करने की सलाह दी गई है, जो कम प्रदूषण फैलाते हैं। साथ ही, सरकार और पर्यावरण संगठनों को भी जागरूकता अभियान चलाना चाहिए ताकि लोग समझ सकें कि आतिशबाजी का न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आतिशबाजी का पर्यावरण और समाज पर असर:
दिवाली जैसे त्योहारों पर आतिशबाजी करना एक परंपरा बन चुकी है, लेकिन इसके पर्यावरण और समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। एक ओर यह त्योहार खुशी और रोशनी का प्रतीक है, लेकिन दूसरी ओर इस दिन बढ़ने वाला प्रदूषण हमारे वातावरण को अत्यधिक प्रभावित करता है। AQI का बढ़ना और CO2 का स्तर बढ़ना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि हमें इस दिशा में सुधार की आवश्यकता है।
जनता में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता:
CO2 के बढ़ते स्तर को रोकने के लिए केवल सरकार ही नहीं, बल्कि हर व्यक्ति को अपना योगदान देना होगा। यदि हम अपने परिवेश को स्वस्थ रखना चाहते हैं, तो हमें ऐसी गतिविधियों से बचना होगा, जो वायुमंडल को नुकसान पहुँचाती हैं। इसके लिए पर्यावरण संरक्षण संगठनों को लोगों को जागरूक करने की दिशा में अभियान चलाना चाहिए और हर स्तर पर लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए।
गोरखपुर में दिवाली के अवसर पर हुए आतिशबाजी से बढ़े CO2 स्तर का अध्ययन यह साबित करता है कि इस प्रकार का प्रदूषण हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर प्रदूषण की इस समस्या से निपटने के लिए प्रयास करें और एक स्वच्छ एवं सुरक्षित पर्यावरण की दिशा में कदम बढ़ाएँ।