Bihar News: बिहार के अररिया जिले में मानवता को शर्मसार करने वाला एक मामला सामने आया है। यहाँ एक मजदूर परिवार ने अपने बच्चों की परवरिश के लिए एक वित्तीय कंपनी से कर्ज लिया था। लेकिन जब कर्ज की किस्तें नहीं भरी जा सकीं, तो वित्तीय कंपनी का एजेंट परिवार को धमकाने लगा, जिससे परिवार में भय फैल गया। इसी डर के कारण माता-पिता ने अपने डेढ़ साल के बेटे को 9 हजार रुपये में बेच दिया। बच्चे के मामा ने यह सौदा करवाया और खुद ही पैसे रख लिए। जिस व्यक्ति को बच्चे का मामा ने बच्चा बेचा, उसने उसे बेंगलुरु में 2 लाख रुपये में बेच दिया।
गाँववालों की मदद से बच्चे की वापसी
जब गाँव वालों को बच्चे के बिकने की जानकारी हुई, तो उन्होंने चंदा इकट्ठा कर 9 हजार रुपये बच्चे के मामा को दिए और बच्चे की वापसी की माँग की। लेकिन बच्चे का मामा बच्चा लौटाने से इनकार करने लगा। मामला सोशल मीडिया के जरिए पुलिस तक पहुँचा, जिसके बाद एक संस्था की मदद से पुलिस ने बच्चे को बरामद कर लिया। हालांकि, इस मामले में अभी तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
50 हजार रुपये का कर्ज लिया था
अररिया के पचिरा पंचायत के वार्ड नंबर 6 की निवासी रेहाना खातून ने माइक्रो फाइनेंस कंपनी से 50 हजार रुपये का कर्ज लिया था, जिसमें से उसने 3-4 किस्तें जमा कर दी थीं। इसके बाद वह कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गईं। कंपनी का एजेंट हर महीने रेहाना के घर किस्त वसूलने आता था और पैसे की माँग कर धमकाता था, जिससे पूरा परिवार परेशान था। परिवार के अनुसार, एजेंट ने उन्हें धमकी दी कि अगर कर्ज नहीं चुकाया गया तो उन्हें जेल भेज दिया जाएगा, जिसके बाद परिवार भयभीत हो गया।
बच्चे के मामा ने किया सौदे का इंतजाम
रेहाना ने इस परेशानी के बारे में अपने माता-पिता से बात की। इसके बाद रेहाना के भाई तनवीर ने दुमरिया गाँव के आरिफ से बातचीत की। बच्चे के मामा ने रेहाना को सुझाव दिया कि उसके 8 बच्चे हैं, उनमें से एक को बेच दें। मामा ने कहा कि बच्चा अच्छे घर में पलेगा और परिवार को पैसे मिल जाएंगे जिससे कर्ज चुकाया जा सकेगा। भाई की बातों से प्रभावित होकर रेहाना ने अपने पति के साथ मिलकर आरिफ को अपने बेटे को 9 हजार रुपये में बेच दिया।
मामा ने रख लिए सारे पैसे, गाँववालों ने की मदद
बच्चे की बुआ अर्सादी खातून ने बताया कि बच्चे के मामा ने सौदा करने के बाद भी परिवार को पैसे नहीं दिए। उसने यह बात गाँववालों को बताई। गाँव वालों ने चंदा इकट्ठा कर 9 हजार रुपये जुटाए और अर्सादी अपने भाई के साथ बच्चे को वापस लाने के लिए आरिफ के घर गई, लेकिन वहाँ भी बच्चा वापस नहीं मिला। दो दिन बाद यह मामला सोशल मीडिया के माध्यम से शहर में फैल गया। जगरण कल्याण भारती नामक संस्था को इसकी जानकारी मिली और संस्था ने फ़र्बिसगंज थाना प्रमुख संजय कुमार को इस बारे में बताया।
पुलिस ने बच्चे को किया बरामद
मामले की गंभीरता को देखते हुए थाना प्रमुख संजय कुमार ने रानीगंज थाना प्रमुख निर्मल कुमार यादवेंदु को इसकी सूचना दी। इसके बाद थाना प्रमुख ने अतिरिक्त थाना प्रमुख कनकलता को मामले की जाँच के लिए भेजा और बच्चे को आरिफ के घर से बरामद कर लिया गया। आरिफ ने बताया कि बच्चे के माता-पिता गरीब हैं, इसलिए उसने बच्चे को पालने के लिए अपने पास रखा था। लेकिन जब बच्चे के माता-पिता और बुआ को थाने बुलाया गया, तो खुलासा हुआ कि बच्चा 9 हजार रुपये में बेचा गया था और पैसे भी परिवार को नहीं मिले थे। मामा ने सारे पैसे अपने पास रख लिए थे।
इस मामले में पुलिस थाने में केस नंबर 1141/24 दर्ज किया गया है और बच्चे को बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया है। अब बाल कल्याण समिति यह तय करेगी कि बच्चा किसके पास रहेगा।
मजदूर पिता की मजबूरी
बच्चे के पिता हारून एक दिहाड़ी मजदूर हैं, जो मुश्किल से महीने में 3-4 हजार रुपये कमा पाते हैं। कभी-कभी उन्हें काम मिल जाता है और कभी-कभी नहीं। उनके पास 8 बच्चे हैं, जिनमें से 5 लड़के और 3 लड़कियाँ हैं। इनमें से एक डेढ़ साल का बेटा भी है, जिसे उन्होंने 9 हजार रुपये में बेच दिया था। बच्चे को खरीदने वाले आरिफ ने बच्चे को बेंगलुरु में 2 लाख रुपये में बेच दिया।
यह बात सामने आई कि बच्चे का मामा तनवीर ने 9 हजार रुपये खुद के लिए रखे और बच्चे की बिक्री से मिले पैसे में से 9 हजार रुपये कर्ज की किस्त के लिए परिवार को देने की योजना बनाई थी। फिलहाल इस मामले में किसी पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई है, लेकिन पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है और बच्चा अब सुरक्षित बाल कल्याण समिति के पास है।
बाल कल्याण समिति का फैसला
बच्चे को फिलहाल बाल कल्याण समिति को सौंप दिया गया है, जो यह निर्णय करेगी कि बच्चे का पालन-पोषण किसके पास होगा। इस मामले ने समाज में गरीबी, मजबूरी और नैतिक पतन की स्थिति को उजागर किया है। वित्तीय दबाव के कारण एक माँ-बाप ने अपने बच्चे को बेचने का फैसला किया, जो हमारे समाज के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।
यह मामला समाज में व्याप्त गरीबी और आर्थिक असमानता को दर्शाता है। एक साधारण मजदूर परिवार जो कि दिहाड़ी पर निर्भर है, वह अपने परिवार की परवरिश के लिए कर्ज तो लेता है, लेकिन वित्तीय दबावों और धमकियों के चलते वह अपने ही बच्चे को बेचने के लिए मजबूर हो जाता है। इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कैसे आर्थिक असमानता और कर्ज का बोझ एक परिवार को उस हद तक ले जा सकता है जहाँ उन्हें अपने ही बच्चे को बेचने जैसा अमानवीय कदम उठाना पड़ता है।