S Jaishankar ने दी अहम सलाह: भारत और रूस के बीच व्यापार में तेजी से वृद्धि हो रही है, लेकिन साथ ही कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे भी उभर रहे हैं जिन पर दोनों देशों को ध्यान देने की आवश्यकता है। इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए भारतीय विदेश मंत्री S Jaishankar और रूस के प्रथम उप विदेश मंत्री डेनिस मंटुरोव के नेतृत्व में 12 नवंबर को नई दिल्ली में होने वाली इंटरगवर्नमेंटल कमीशन (IGC) की 25वीं बैठक में महत्वपूर्ण पहलुओं पर बातचीत की जाएगी। इस बैठक में भारत अपने बढ़ते व्यापार घाटे और स्थानीय मुद्रा (रुपये और रूबल) में व्यापार को लेकर अपनी चिंताओं को प्रमुखता से उठाएगा।
भारत का व्यापार घाटा और तेल आयात
भारत का रूस से व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है, खासकर जब से भारत ने रूस से अधिक तेल खरीदना शुरू किया है। 2023-24 के दौरान भारत का व्यापार घाटा 57 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। ऐसे में भारत की चिंता यह है कि जब तक दोनों देशों के बीच व्यापार का लक्ष्य 2030 तक 100 अरब डॉलर तक पहुंचता है, यह घाटा और बढ़ सकता है। रूस से तेल आयात बढ़ने के कारण, भारत को एक बड़े व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
स्थानीय मुद्रा में व्यापार का महत्व
एस जयशंकर ने सोमवार को भारत-रूस व्यापार मंच की बैठक में यह महत्वपूर्ण बात उठाई कि वर्तमान समय में भारत और रूस के बीच व्यापार को स्थानीय मुद्राओं (रुपये और रूबल) में निपटाना बहुत जरूरी हो गया है। यह कदम दोनों देशों के लिए व्यापारिक लेन-देन को और सरल बनाने के साथ-साथ वैश्विक व्यापार की चुनौतियों से निपटने में मददगार साबित होगा। जयशंकर ने कहा कि रूस ने 2022 के बाद एशिया पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग के नए अवसर उभर रहे हैं। इस सहयोग से न केवल दोनों देशों को लाभ होगा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी फायदेमंद साबित होगा।
व्यापार घाटे को कम करने के लिए कदम
जयशंकर ने दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में व्यापार पूरी तरह से एकतरफा है, और इसे संतुलित करने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे। इसके लिए, नॉन-टैरिफ बैरियर्स और नियामक अड़चनों को दूर करने की आवश्यकता है, ताकि व्यापार को सुगम बनाया जा सके।
व्यापार समझौतों को प्राथमिकता
जयशंकर ने कहा कि भारत और रूस के बीच यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) के साथ व्यापार समझौते पर बातचीत को तेज़ी से आगे बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही, दोनों देशों के बीच निवेश संधि (Bilateral Investment Treaty) को भी पूरा करना बेहद जरूरी है। दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए इन समझौतों का पूरा होना आवश्यक है।
रूस की कंपनियों का रुपयों में व्यापार करने में संकोच
रूस और भारत की सरकारों के बीच रुपयों और रूबल में व्यापार को लेकर कई बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन इस दिशा में खास सफलता नहीं मिल पाई है। हालांकि, कुछ रूसी कंपनियों ने भारतीय रुपये में भुगतान स्वीकार किया है, और इस राशि को उन्होंने अपने वॉस्ट्रो खाते में जमा किया है। लेकिन रूस का भारत से आयात बहुत कम होने के कारण, यह राशि इस्तेमाल में नहीं आ रही है। यही कारण है कि अन्य रूसी कंपनियां भी रुपये में व्यापार करने से हिचकिचा रही हैं। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए मंगलवार को होने वाली बैठक में चर्चा की जाएगी।
2030 तक 100 अरब डॉलर का व्यापार लक्ष्य
जयशंकर ने यह भी बताया कि भारत और रूस के बीच व्यापार अभी 66 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, और दोनों देशों का लक्ष्य 2030 तक इसे 100 अरब डॉलर तक बढ़ाना है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा, और इसे प्राप्त करने के लिए व्यापारिक अवरोधों को हटाना आवश्यक होगा।
भारत-रूस सहयोग के नए अवसर
एस जयशंकर ने दोनों देशों के बीच सहयोग के संभावित क्षेत्रों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि रूस के पास प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है, जबकि भारत लंबे समय तक 8 प्रतिशत की विकास दर प्राप्त करने के मार्ग पर है। ऐसे में दोनों देशों के बीच सहयोग से न केवल व्यापारिक रिश्तों को मजबूती मिलेगी, बल्कि यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक योगदान देगा।
व्यापारिक मानकों का पालन
भारत और रूस के व्यापार को और अधिक बढ़ावा देने के लिए व्यापारिक मानकों का पालन करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों को अपने-अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक मानकों को मजबूत करना होगा ताकि व्यापार की गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
रूस से ऊर्जा आपूर्ति और भारत का विकास
भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस से तेल और गैस का आयात महत्वपूर्ण है। जयशंकर ने कहा कि भारत और रूस के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी और दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को भी बढ़ावा मिलेगा।
समग्र वैश्विक रणनीति में भूमिका
जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत और रूस के बीच बढ़ता हुआ सहयोग वैश्विक रणनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी महत्वपूर्ण होगा। दोनों देशों के आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने से न केवल द्विपक्षीय लाभ होगा, बल्कि यह समग्र वैश्विक रणनीति में भी सकारात्मक योगदान देगा।
भारत और रूस के बीच व्यापार संबंधों में वृद्धि तो हो रही है, लेकिन इसके साथ ही कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां भी सामने आ रही हैं। इन चुनौतियों को हल करने के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा, ताकि व्यापार घाटे को कम किया जा सके और व्यापार को स्थानीय मुद्राओं में लाया जा सके। साथ ही, दोनों देशों के बीच सहयोग के नए रास्तों को भी खोलना होगा ताकि उनका समग्र आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सके।