इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति की याचिका पर अंतरिम गुजारा भत्ता पत्नी को देने के आदेश पर लगाई रोक

हाईकोर्ट ने पति की याचिका पर अंतरिम गुजारा भत्ता देने के आदेश पर लगाई रोक

हेडलाइन: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति की याचिका पर अंतरिम गुजारा भत्ता देने के आदेश पर लगाई रोक, फैमिली कोर्ट को व्यभिचार का मुद्दा पहले तय करने का निर्देश

सब-हेडलाइन: हाईकोर्ट ने कहा – धारा 125(4) के तहत व्यभिचार के आरोपों की जांच के बाद ही तय होगा गुजारा भत्ता देने का आदेश

इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए फिरोजाबाद की फैमिली कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पति से अलग रह रही पत्नी को 7000 रुपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। यह मामला तब सामने आया जब पति ने हाईकोर्ट में गुहार लगाते हुए कहा कि उसकी पत्नी का आचरण संदिग्ध है, और उसके विरुद्ध व्यभिचार के गंभीर आरोप हैं।

हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125(4) के तहत यह साफ है कि यदि पति-पत्नी के बीच व्यभिचार का आरोप लगाया गया हो, तो फैमिली कोर्ट को पहले इस मुद्दे का समाधान करना चाहिए। हाईकोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि आरोप के संबंध में पहले निष्कर्ष निकाला जाए और उसके बाद ही गुजारा भत्ता पर फैसला लिया जाए।

फैमिली कोर्ट ने बिना जांच दिए थे अंतरिम गुजारा भत्ता का आदेश
फिरोजाबाद की फैमिली कोर्ट ने 13 अप्रैल 2023 को अपने अंतरिम आदेश में पति को निर्देश दिया था कि वह पत्नी को 7000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता दे। यह आदेश उस समय पारित किया गया था जब पति ने अपनी पत्नी पर व्यभिचार में लिप्त होने के आरोप लगाए थे। पति के अनुसार, इन आरोपों को गंभीरता से लेते हुए फैमिली कोर्ट को पहले इनकी सत्यता की जांच करनी चाहिए थी।

पति के वकील ने क्या तर्क दिया?
पति की ओर से प्रस्तुत तर्कों में वकील ने हाईकोर्ट को बताया कि सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार, जब पति द्वारा पत्नी के खिलाफ व्यभिचार के आरोप लगाए जाते हैं, तो बिना इस मुद्दे का समाधान किए फैमिली कोर्ट को अंतरिम भत्ते का आदेश नहीं देना चाहिए। वकील ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया और सीधा गुजारा भत्ता देने का आदेश पारित कर दिया, जो कि अनुचित है।

कोर्ट ने जारी किया नोटिस, पत्नी को देना होगा जवाब
हाईकोर्ट ने इस मामले में फैमिली कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और पत्नी को नोटिस जारी कर तीन हफ्ते के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 25 नवंबर तय की है, जिसमें पत्नी का पक्ष भी सुना जाएगा।

धारा 125(4) और गुजारा भत्ता पर कानून का दृष्टिकोण
सीआरपीसी की धारा 125(4) के अनुसार, यदि कोई पत्नी व्यभिचार में लिप्त पाई जाती है, तो उसे गुजारा भत्ता देने का अधिकार नहीं है। इसी कारण हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया कि पहले फैमिली कोर्ट इस मामले में आरोपों की सत्यता की जांच करे और फिर गुजारा भत्ता देने का आदेश जारी करे।

क्या होता है अंतरिम गुजारा भत्ता?
अंतरिम गुजारा भत्ता वह आर्थिक सहायता है, जो अदालत द्वारा पति से अलग रह रही पत्नी को उसके जीवनयापन के लिए दी जाती है। यह भत्ता तब तक दिया जाता है, जब तक अदालत इस मामले का अंतिम निर्णय न सुना दे। इस मामले में हाईकोर्ट का आदेश इस ओर इशारा करता है कि जब तक व्यभिचार के आरोपों की सत्यता स्पष्ट नहीं हो जाती, तब तक भत्ता का आदेश स्थगित रहेगा।

न्यायालय के आदेश का संभावित प्रभाव
हाईकोर्ट का यह आदेश आने वाले समय में अन्य फैमिली कोर्ट के मामलों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इससे स्पष्ट है कि फैमिली कोर्ट को ऐसे मामलों में व्यभिचार के आरोपों की जांच पहले करनी होगी और उसके बाद ही अंतरिम गुजारा भत्ता पर निर्णय लिया जा सकेगा।

निष्कर्ष: इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश इस ओर इंगित करता है कि फैमिली कोर्ट को गुजारा भत्ता संबंधी निर्णय में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखनी होगी।

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