भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री की सुपरहिट अदाकारा Akshara Singh ने कई हिट फिल्मों में काम किया है और सोशल मीडिया पर वे काफी सक्रिय रहती हैं। वे अपने विचारों को बिना किसी झिझक के लोगों के सामने रखने के लिए जानी जाती हैं। हाल ही में अक्षरा ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट किया है, जिसके कारण वे चर्चा में आ गई हैं।
अक्षरा ने साझा की एक साधारण तस्वीर
अक्षरा का यह पोस्ट छठ पर्व से जुड़ा हुआ है। इसमें उन्होंने इस पर्व और महिलाओं से जुड़े सवाल उठाए हैं। अक्षरा ने अपनी एक तस्वीर साझा करते हुए यह सवाल किया है कि छठ पूजा के दौरा को महिलाएं क्यों नहीं उठा सकतीं? इंस्टाग्राम पर साझा की गई इस तस्वीर में वे बिना मेकअप के नजर आ रही हैं।
सोशल मीडिया पर पूछा यह सवाल
तस्वीर में अक्षरा पीले रंग के सलवार सूट में काफी साधारण अंदाज में नजर आ रही हैं। उन्होंने अपने सिर पर एक टोकरी रखी हुई है। फोटो के कैप्शन में उन्होंने लिखा, “‘बन ना कवन देव कहरिया, दौरा घाटे पहुडाय’ यह छठ का पारंपरिक गीत वर्षों से गाया जा रहा है और जब भी मैं इस गीत की यह लाइन सुनती हूं, मेरे मन में सवाल आता है कि छठ पूजा के हर नियम को निभाने वाली महिला, जो खड़ना से लेकर अंत तक तीन दिन के व्रत के साथ इतनी श्रद्धा और मेहनत से पूजा करती है, वही महिला दौरा उठाकर घाट क्यों नहीं जा सकती?”
अक्षरा पहली बार कर रही हैं छठ पूजा
अक्षरा ने आगे लिखा, “क्यों कोई देवता कहरिया बन सकता है, तो देवी क्यों नहीं? एक बेटी होने के नाते, मैं हमारे समाज से निवेदन करती हूं कि बदलते समय के साथ यह सोचे कि जिस घर में बेटा नहीं है, क्या वहां छठ पूजा नहीं की जा सकती? और यह विचार इस वजह से और मजबूत हुआ, क्योंकि मैं भी पहली बार छठ कर रही हूं। छठी मइया की जय।”
लोगों की प्रतिक्रियाएं
अक्षरा के इस पोस्ट पर लोगों ने जमकर प्रतिक्रियाएं दी हैं। एक यूजर ने लिखा, “बिल्कुल, अब बेटी और बेटे में कोई फर्क नहीं है… जो काम बेटा कर सकता है, वह बेटी भी कर सकती है। समाज को इसे समझना होगा।” वहीं, एक अन्य यूजर ने लिखा, “अक्षरा जी, मेरी माँ अकेले दौरा उठाकर घाट तक जाती हैं और मेरे लिए छठ करती हैं।” इसके अलावा भी कई यूजर्स अक्षरा के इस विचार का समर्थन करते नजर आए।
समाज में छठ पर्व और महिलाओं की भूमिका
छठ पूजा बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड समेत देश के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाई जाती है। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मइया की आराधना का प्रतीक है। छठ पर्व में महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए भगवान सूर्य और छठी मइया की पूजा करती हैं। परंपरागत रूप से इस पूजा में कई नियम और रिवाज होते हैं, जिनमें से एक नियम यह भी है कि पूजा के दौरा (बाँस की बनी टोकरियाँ) को घाट पर लेकर पुरुष ही जाते हैं। अक्षरा के इस सवाल ने इन परंपराओं पर एक नई बहस को जन्म दिया है।
महिलाओं का दौरा उठाकर घाट जाने का रिवाज क्यों नहीं है?
अक्षरा के सवाल का मुख्य उद्देश्य यह है कि यदि महिलाएं छठ पूजा के सभी नियमों का पालन कर सकती हैं, तो उन्हें दौरा उठाकर घाट जाने की अनुमति क्यों नहीं दी जाती। इस सवाल ने सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति सोचने पर मजबूर कर दिया है। छठ पूजा की विधि में महिलाओं का योगदान सबसे ज्यादा होता है, फिर भी उन्हें कुछ कार्यों में सीमित कर दिया जाता है। इस विचार को बदलने के लिए आज की पीढ़ी में एक नई जागरूकता आ रही है और Akshara Singh का यह सवाल उसी दिशा में एक कदम है।
बदलते समाज में बेटियों की भूमिका
समाज में बेटियों की भूमिका अब पहले से कहीं अधिक बढ़ी है। वे हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं और कई परंपराओं को बदलने में अहम भूमिका निभा रही हैं। आज के दौर में बेटियां हर उस जिम्मेदारी को निभाने में सक्षम हैं, जिसे पहले बेटों का कार्य माना जाता था। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि छठ पूजा जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर महिलाओं को दौरा उठाने से क्यों रोका जाए?
Akshara Singh के विचारों का समर्थन
Akshara Singh के इस सवाल का समर्थन करते हुए कई लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। उनकी पोस्ट पर बहुत से लोगों ने लिखा कि समाज में अब बेटे और बेटियों के बीच कोई अंतर नहीं होना चाहिए। जो कार्य बेटा कर सकता है, वही कार्य बेटी भी कर सकती है। एक यूजर ने लिखा, “बेटी होना गर्व की बात है और आज की बेटियां हर कार्य में सक्षम हैं।” वहीं, कुछ लोगों ने यह भी बताया कि उनके परिवार में भी महिलाएं छठ पूजा के दौरा को उठाकर घाट जाती हैं। इससे यह बात स्पष्ट होती है कि बदलते समय के साथ लोग इन परंपराओं को लचीले ढंग से अपना रहे हैं और महिलाओं को अधिक स्वतंत्रता दे रहे हैं।
समाज में सकारात्मक बदलाव की आवश्यकता
Akshara Singh का यह सवाल छठ पूजा की परंपराओं को लेकर समाज में बदलाव की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। यदि एक महिला अपने परिवार के सुख और समृद्धि के लिए तीन दिन का कठिन व्रत रख सकती है, तो उसे दौरा उठाकर घाट तक ले जाने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए। अक्षरा का यह सवाल समाज में बेटियों के प्रति सम्मान और समानता की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
Akshara Singh के इस सवाल ने छठ पूजा से जुड़े रिवाजों पर नए सिरे से विचार करने का अवसर दिया है। समाज में बदलते समय के साथ परंपराओं को भी बदलने की आवश्यकता होती है। अक्षरा ने यह सवाल उठाकर उन सभी महिलाओं के अधिकारों की वकालत की है, जो छठ पूजा की हर विधि में भाग लेती हैं। उनकी यह सोच हमारे समाज को बेटियों की क्षमता को पहचानने और उन्हें हर कार्य में बराबरी का दर्जा देने की दिशा में एक कदम है। समाज में यदि सभी बेटियों को समान अवसर और अधिकार मिलें, तो न सिर्फ वे अपने परिवार बल्कि समाज की उन्नति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।