सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि SIR (Special Summary Revision) का मामला पूरी तरह केंद्रीय चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। कोर्ट ने यह भी कहा कि देश में कुछ लोग बिना अनुमति के रह रहे हैं, जो अपनी पहचान उजागर होने के डर से सामने नहीं आना चाहेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और संबंधित पक्षों से कहा कि कम से कम उन लोगों की सूची तो उपलब्ध कराई जानी चाहिए, जो वास्तव में SIR से प्रभावित हुए हैं।
चुनाव आयोग को काम करने की आज़ादी
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया में अन्य राज्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। कोर्ट ने कहा कि SIR पूरी तरह चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है और यह उसका विशेषाधिकार है। सुनवाई में कोर्ट ने कहा, ‘हम हर काम अपने हाथ में क्यों लें? चुनाव आयोग के पास अपना तंत्र है, उसे काम करने दिया जाए।’ कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से सवाल किया कि वे क्यों चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट सारे काम अपने नियंत्रण में ले ले।
बिना अनुमति रह रहे लोगों पर टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि देश में कुछ लोग बिना अनुमति के रह रहे हैं और वे सामने आने से डरेंगे क्योंकि उनके नाम मतदाता सूची से हटने पर उनकी पहचान उजागर हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया कि वे कम से कम 100 ऐसे लोगों की सूची पेश करें, जिनका दावा है कि उनके नाम मतदाता सूची से हटाए गए, लेकिन उन्हें कोई आदेश नहीं मिला, जिससे वे अपील नहीं कर पा रहे। कोर्ट ने कहा, ‘हमें उन लोगों की एक इलस्ट्रेटिव लिस्ट चाहिए, जिन्हें यह शिकायत है।’
चुनाव आयोग को दिए सुझाव
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को मौखिक रूप से सुझाव दिया कि वह एक विस्तृत नोट तैयार करे, जिसमें 3.66 लाख हटाए गए नामों और बाद में जोड़े गए 21 लाख नामों का पूरा ब्योरा और उनके कारणों का उल्लेख हो। कोर्ट ने साफ कहा कि SIR चुनाव आयोग का कार्यक्षेत्र है और उसे स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाना चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी। बिहार चुनावों में SIR का मुद्दा काफी चर्चा में है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।