Gorakhpur Link Expressway: गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के निर्माण में जुटी अप्को फर्म से जुड़ा एक बड़ा धोखाधड़ी मामला सामने आया है। फर्म द्वारा भुगतान की गई निर्माण सामग्री की रॉयल्टी में 81 लाख रुपये के गबन का आरोप लगाया गया है। यह मामला तब सामने आया जब अप्को फर्म के सीनियर जनरल मैनेजर ने इसकी शिकायत की। शिकायत के बाद, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) ने इस मामले की जांच साइबर पुलिस स्टेशन को सौंप दी, और पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है, जिसमें फर्म के कुछ कर्मचारियों से पूछताछ की जा चुकी है। अब पुलिस शिकायतकर्ता से भी पूछताछ करने वाली है।
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के निर्माण में घटित गबन
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य अप्को फर्म को सौंपा गया था, जो लखनऊ स्थित एक निर्माण फर्म है। इस फर्म ने निर्माण सामग्री जैसे बालू, गिट्टी, बिल्लास्ट और ईंटें विभिन्न स्थानों से मंगवाईं। इन सामग्री के भुगतान के लिए फर्म ने 2020 से 2024 तक के रॉयल्टी कागजात को उत्तर प्रदेश के खनन और भूगर्भ शस्त्र निदेशालय के पोर्टल पर अपलोड किया। लेकिन जब इन कागजात का सत्यापन किया गया, तो यह सामने आया कि इन सभी रॉयल्टी कागजात की पहले ही भुगतान हो चुका था।
यह जानकारी सामने आते ही अप्को फर्म के जिम्मेदार लोग चौंक गए। इसके बाद, फर्म के सीनियर जनरल मैनेजर ने लोक शिकायत निदेशालय में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत पत्र जिला अधिकारी (DM) के पास पहुंचा, जिन्होंने मामले की जांच और कार्रवाई के लिए SSP को पत्र भेजा। SSP ने तुरंत मामले की जांच साइबर पुलिस स्टेशन को सौंप दी, और जांच शुरू कर दी गई है।
रॉयल्टी कागजात की धोखाधड़ी
रॉयल्टी कागजात के आधार पर निर्माण सामग्री की आपूर्ति के लिए भुगतान किया जाता है। जब अप्को फर्म ने रॉयल्टी कागजात पेश किए, तो यह धोखाधड़ी का खुलासा हुआ। फर्म ने पुलिस को लगभग दो हजार रॉयल्टी नंबर सौंपे, जिनका पहले ही भुगतान किया जा चुका था। पुलिस अब यह जांच रही है कि क्या रॉयल्टी कागजात का भुगतान ट्रक के आने से पहले किया गया था या बाद में पैसे निकाले गए थे।
पुलिस का मानना है कि यदि रॉयल्टी कोड शेयर किया जाए, तो उसकी भुगतान प्रक्रिया किसी भी विभाग में की जा सकती है। इसके तहत, रॉयल्टी कागजात को फर्जी तरीके से भुगतान कराने की संभावना है। पुलिस ने अब तक कुछ कर्मचारियों से पूछताछ की है और कंपनी से जांच के लिए कुछ दस्तावेज मांगे हैं। यह जांच यह स्पष्ट करेगी कि क्या गबन के लिए जिम्मेदार लोग अंदर से ही थे या बाहरी किसी व्यक्ति ने यह धोखाधड़ी की।
पुलिस की जांच और कार्रवाई
साइबर पुलिस स्टेशन द्वारा इस मामले की जांच की जा रही है। जांचकर्ताओं ने कागजातों का पूरा विश्लेषण शुरू कर दिया है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि भुगतान की प्रक्रिया किस प्रकार की गई थी। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि जांच में सहयोग किया जा रहा है और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। पुलिस ने अब तक दो हजार से अधिक रॉयल्टी कागजातों का सत्यापन किया है और इसके आधार पर मामले की गहन जांच चल रही है।
पुलिस का बयान:
“यह रॉयल्टी गबन का मामला कुल 81 लाख रुपये का है। इस संबंध में शिकायत दर्ज की गई है। पुलिस पूरी जांच में हर प्रकार का सहयोग देगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। यह पत्र साइबर पुलिस स्टेशन को मिला है और इसकी जांच चल रही है। कंपनी से कुछ दस्तावेज़ भी जांच के लिए मांगे गए हैं। आगे की कार्रवाई साक्ष्यों के आधार पर की जाएगी।”
वित्तीय गबन का मुद्दा और उसका प्रभाव
गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे जैसे बड़े निर्माण परियोजना में गबन की घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। निर्माण कंपनियां जब ऐसी धोखाधड़ी के शिकार होती हैं, तो न केवल वित्तीय नुकसान होता है, बल्कि इसके कारण परियोजना की प्रगति भी रुक सकती है। इस मामले में भी गबन का खुलासा उद्घाटन से पहले हुआ है, जिससे अप्को फर्म और संबंधित सरकारी अधिकारियों की प्रतिष्ठा को भी धक्का लगा है। अब देखना यह है कि इस मामले में जांच कितनी प्रभावी होती है और किसे दोषी ठहराया जाता है।
भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की जड़ें
यह घटना इस बात का संकेत है कि सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्र में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का स्तर बढ़ता जा रहा है। निर्माण परियोजनाओं के लिए आवश्यक कागजी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता का अभाव है, और इसका फायदा कुछ लोग उठाते हैं। अगर समय रहते इस तरह की धोखाधड़ी पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो यह अन्य परियोजनाओं में भी समस्या पैदा कर सकता है।
आगे की राह
अब पुलिस और प्रशासन के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होगा कि इस मामले की पूरी और निष्पक्ष जांच की जाए। अगर गबन के दोषियों को पकड़ने में सफलता मिलती है, तो यह न केवल इस मामले को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए एक मजबूत उदाहरण भी बनेगा। साथ ही, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के उद्घाटन से पहले इस मामले के सुलझने से जनता और अन्य संबंधित पक्षों का विश्वास भी बना रहेगा।
आखिरकार, यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी, गंभीर वित्तीय और कानूनी समस्याओं का कारण बन सकती है, जो केवल जांच और सख्त कार्रवाई के जरिए हल की जा सकती है।